ये काली अंधेरी रात

समंदर से भी गहरी है इसकी जात...

हर शैतान को देती है ये एक पोशाक

हर कुफ्र है इसकी मोहताज...

इसी किसी काली रातों में

अंधेरे ओढ़ चार शैतानों  ने...

फिर अपने नापाक हाथों को है खोला

फिर आज किसी फूल को बेरहमी से है तोड़ा...

हम कब तक देखें ये कोफ्री निशानी

हर मोम के पिघलने के बाद फिर से क्यों दोहराई जाती है यही कहानी...

अब तो फेक मोम को मशाल को उठा लो

अब तो इन हैवानों को मरोर इनको अर्थी पर लेटा दो।।