एक समय की बात है रामपुर नाम के एक गांव में एक काफ़ी मेधावी लड़का रहता था जि स्का नाम वि जय था। अपनी पढाई में अच्छे होने और अच्छा इंसान होनेके कारण उसे पुरा गांव जानता था। वो सबकी मदद कि या करता था चाहे वह जो कोई भी हो। उसके घर मेंउसके पि ता और उसकी छोटी बहन नि धि रहते थे जो उससे 4 साल की छोटी थी। उसे सभी प्यार सेछोटी बुलाया करते थे। वि जय की माँ की मौत हो चुकी थी छोटी को जन्म देने के बाद, ऐसा उसके पि ता जी ने बताया था। वि जय की माँ एक बहुत पहुंची हुई वकील थी। उसकी माँ बहुत ही उदार व्यक्ति थी। वि जय का एक सबसे करीब दोस्त था जि स्का नाम सुरेश था। वि जय और सुरेश अधि कतर समय साथ में रहा करते थे। वि जय और सुरेश रामपुर के हाई स्कूल में बारहवीं के छात्र थे। वि जय अपनी काक्षा मेंप्रथम आता था। वे दोनो अक्सर साथ में स्कूल जाया करते थे।
तो एक दि न वि जय और सुरेश स्कूल गए। 10:30 हुए और वि जय की कक्षा में शि क्षक आए। शि क्षक अटेंडेंस लि ए और फि र सभी छत्रों से उनके बकेट लि स्ट के बारे में पूछने लगे। "बकेट लि स्ट का मतलब कुछ ऐसी चीज जो इंसान अपने जीवन के समाप्त होने से पहलेकरना चाहता है।" सभी छात्र अपनी अपनी बकेटलि स्ट के बारे में बताने लगे। कोई बं जी जं पिं ग, स्कूबा डाइविं ग तो कोई लद्दाख और
केदारनाथ यात्रा| शि क्षक फि र वि जय के पास आए और बोले- "बेटा वि जय तुम्हारे बकेट लि स्ट में क्या है?" वि जय ने खड़े हो कर अपने शि क्षक को अपने बकेटलि स्ट के बारे में बताना शुरू कि या। बाकी के जैसे उसके बकेट लि स्ट में भी स्कूबा डाइविं ग, केदारनाथ यात्रा थी लेकि न इसके अलावा भी कुछ था जो वि जय ने अपने बकेट लि स्ट में जो थोड़ा अजीब था। वह अजीब बात यह थी की उसे अपनी माँ की मृत्यु का राज़ पता करना था। तो सारी चीज़ों पर चर्चा के बाद कक्षा का पहला घं टा समाप्त हुआ। फि र अलग अलग शि क्षक अपने अलग अलग समय में आए और अं त में स्कूल में छुट्टी की घं टी बजी। हमेशा की तरह वि जय और सुरेश साथ में घर आने के लि ए नि कल पड़े। आते वक्त रास्ते में सुरेश ने वि जय से पूछा - "वि जय तुम्हारी बकेट लि स्ट तो काफ़ी अच्छी है, लेकि न उसमे एक चीज़ अजीब लगी।" वि जय ने बोला - "क्या?"। सुरेश ने वि जय की ओर देखते हुए कहा _" जो तुमने कहा की तुम्हे अपनी माँ की मृत्यु का राज़ पता करना है, तो यह बताओ की उसमें कोई राज़ छि पा हैक्या? तुम्हारे पि ता का तो कहना है की तुम्हारी माँ की मौत छोटी को जन्म देने के चार महि नो बाद ही हो गई थी! तो तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि उस बात के पीछे कोई राज़ छि पा है?” इसका उत्तर वि जय ने बड़ी गं भीरता से दि या, उसने सुरेश से कहा- "दोस्त ! तुम्हारा कहना तो बि लकुल ठीक है और बाकी लोग भी यही कहते हैं लेकि न फि र भी मुझे ऐसा लगता है कोई राज़ छि पा है और मुझे अपनी माँ के बारे में जाननेका परू ा अधि कार ह ैऔर क्यं किू वह बहुत की अच्छी थी, मुझे इस बात पर पूरा वि श्वास नहीं होता हैइसलि ए मुझे मेरे जीवन काल के खतम होने से पहले इसकी सारी सच्चाई जाननी है" । सुरेश ने अपना सर हि लाते हुए कहा " ठीक है दोस्त! मैं भी हूं तुम्हारे साथ!" फि र दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा औरऔर मुस्करा कर घर की तरफ चल पड़े । घर आ कर वि जय मं हु हाथ धोकर अपन े पि ता के साथ खाना खाने बठै ा। खान े के दौरन वि जय न ेअपन े पि ता से अपनी माँ के बारे में पूछना शुरू कर दि या| उसके पि ता ने हमेशा की तरह जवाब दि या की तुम्हारी माँ छोटी को जन्म देने के 4 महीने बाद इस दुनि या से चली गई और वि जय हमेशा की तरह उसकी वजह पूछने लगा। उसके पि ता ने उसकी इस बात को अनसुना कर दि या। उसने दुबारा अपने पि ता से यह सवाल नहीं पूछा। अगली सुबह, रोज़ की तरह वि जय और सुरेश साथ में स्कूल जाने लगे। जाते वक्त रास्ते में वि जय और सुरेश उसकी माँ के वि षय में ही चर्चा कर रहेथे, तभी रास्ते में एक बुजुर्ग मि ला जि न्होंने वि जय
को पनि तरफ बुलाया। वे दोनो उस बुजुर्ग के पास गए और बोले “ क्या हुआ दादा जी?" उस बुजुर्ग ने वि जय को बोला की तुम भावना के बेटे हो ना? उसने हाँ की ओर सर हि लाया। फि र उस बुजुर्ग ने बोला -
“बेटा देखो, मुझे नहीं पता की तुम अपनी माँ की मृत्युके बारे में कि स हद तक जानते हो। लेकि न अगर तुम्हे इस बात का पता लगाना है तो तुम्हे हमारे गांव से कुछ कि लोमीटर की दूरी पर एक जमुनानगर नाम का गांव है, वहा जाना होगा। जमुनानगर में एक सरकारी अस्पताल है और उस अस्पताल में जाने के बाद भावना की मृत्यु की गुत्थी सुलझेगी। इतना कह कर वे बुजुर्ग चले गए। उनके जाने के बाद वि जय
सोच में पड़ गया की हमें उस बुजुर्ग की बात पर वि श्वास करना चाहि ए या नहीं। क्योंकि , गांव वाले उस बुजुर्ग को पागल कहते हैं। वि जय और उसके दोस्त ने आपस में इस बात की चर्चा की और जमुनानानगर जाने का फैसला कि या क्योंकि वि जय के दि ल में उस गुत्थी को सुलजाने की आग जल रही थी। अगली सुबह, दोनो पूरी तैयारी के साथ अपने-अपने घर से नि कले। रामपुर से जमुनानगर तक का सफर उन दोनों ने बस से तय कि या। जमुनानगर जाते जाते काफ़ी शाम हो गई थी। शाम होने के करन वे दोनों जमुनानगर के एक होटल मैं ठहरे। सुबह होते ही दोनो मि त्र जमुनानगर के उस सरकारी अस्पताल के लि ए रवाना हुए। लोगों से पूछ ताछ के बाद आखि र कार वेदोनो उस अस्पताल तक पहुँ च ही गए। अस्पताल पहुँ चने के बाद वि जय ने वहां के कार्यकर्ता ओं से अपनी माँ, यानि की भावना देवी के बारे में पूछने लगा। भावना देवी का नाम सुनते ही वहां के लोग या तो अनसुना कर देते, या कुछ ‘नहीं पता’ कह
देते । लोगो के ऐसे व्यवहार को देख कर वि जय के मन मेंजो शक था वह बढ़ने लगा और साथ ही साथ वह परेशान भी होने लगा। वि जय को ऐसे परशान देख अस्पताल के एक कार्यकर्ता उसके पास गया और
उससे पूछा की क्या बात है तुम परशान क्यों हो? वो अस्ताल का सबसे पुराना कार्यकर्ता था। वि जय ने बोला की यहाँ पर सभी भावना देवी का नाम सनु त े ही मँ हु क्यों फे र ल े रह े ह?ै कार्यकर्ता न े बोला - "तमु भावना देवी के कौन हो? उसने कहा-’’ मैं उनका बेटा हूं और मुझे भावना देवी यानि की मेरी माँ की मृत्यु की सच्चाई जाननी है, अगर आपको कुछ पता है तो मुझे बताइए ।"उसने कहा शांत हो जाओ, शांत हो जाओ सब बताता हूं। फि र उस कार्यकर्ता ने बताना शुरू कि या| उसने कहा- “तुम्हारी माँ भावना देवी एक बहुत पहुँ ची हुई वकील थी| अच्छे-अच्छे मामले में जीत हासि ल की है, जमुनानगर के सरपं च को तुम्हारी मां ने जेल की हवा खि लाई थी क्योंकि वह काफी बुरा और धोकेबाज़ आदमी था। जेल जाने की वजह से उसकी काफ़ी बदनामी भी हुई। इस वजह से, जेल से नि कलनेके बाद उसने अस्पताल से ही भावना देवी को उठवा दि या और लोगो में यह बात फेला दी की भावना देवी की मौत हो गई है। साथ ही, उसने तुम्हारी माँ को इस बात की भी धमकी दी की अगर इस बात की खबर कि सी को भी मि ली तो वह पुरे रामपुर को ख़तम कर देगा, इसी डर से तुम्हारी माँ उसके कैद में रही| लेकि न रात को तुम्हारी माँ छुप-छुप कर इस अस्पताल में लोगो की मदद करने आया करती थी और इस बात की खबर बस मुझे थी। एक दि न उस सरपं च को इस बात की खबर लगी और उसने गुस्से में आ कर तुम्हारी माँ को एक चट्टान पर ले जा कर वहां से धक्का दे दि या| इस घटना से तुम्हारी माँ को बहुत चोट लगी और आखि र उनकी बेवजह बोहोत दुखद मृत्यु हो गयी| खैर वह सरपं च आज तक अपने पाप की सज़ा भुगत रहा है लेकि न तुम्हारी माँ कभी वापस नहीं आ पाई| ” इन बातों को सुनकर वि जय को समझ नहीं आ रहा था की वह दुखी हो या गुस्से में आये। सच है की अपने चाहने वालों के बारे में इतनी गहरी बातें उनकर कि सी का भी मन भावुक और दुखी हो जाएग। अपनी माँ के दयालु व्यवहार का परि णाम जान कर वि जय के मन में भी अस्पताल की सेवा करने की भावना जागी| उसने कहा - “अब मैं भी इस अस्पताल में लोगो की सेवा करने आया करूं गा!" और अपनी बातो के अनुसार वि जय उस अस्पताल की सेवा करने आया करता था। इस तरह से वि जय ने अपनी बकेट लि स्ट में से एक सबसे ज़रूरी काम ख़त्म कर लि या|