यहां लाखों जमूरों का एक ही 'मदारी' है।
जिसके इशारे पर कभी 'मकबूल' नाचता था, अभी आपकी बारी है।
उसकी मर्जी से ही 'कारवां' थमता है, बढ़ता है, गुज़र जाता है।
पर राह में छोड़नी है जिन्हें पैरों के निशान, उसका 'जज्बा' भी कुछ कर जाता है।
ये सफर भी कुछ ऐसा था कि इसके खत्म होने पर हर आँख से आंसू बही।
जीवन के रंगमंच पर ये 'हासिल' किया कि पर्दा गिरने के बाद भी तालियां बजती रही।
ज़माना फिर कभी नाम लेगा तो कोई 'किस्सा' भी इसके बाद कहेगा।
मंजिल ये मिली की मेरा ये सफर लोगों को 'Life of Pi' से नहीं 'Life of Irrfan' से याद रखेगा।